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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 610] - सूत्रकृतांग 1000 आयुष्य क्षय होने पर जीव अपनी देह छोड़ देता है। 117. पाप-परिणाम थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 611] - सूत्रकृतांग 1A/20 जो आत्मा पापकर्म का उपार्जन करती है, उन्हें रोना पड़ता है, दु:ख भोगना पड़ता है और भयभीत होना पड़ता है। 118. श्रमणत्व से दूर कुलाइंजे धावति साउगाई, अहाऽऽहुसे सामणियस्स दूरे। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 611] - सूत्रकृतांग 10/23 - जो साधक स्वादिष्ट भोजनवाले घरों में दौड़ता है, वह श्रमणभाव से दूर है । ऐसा तीर्थंकरोंने कहा है। 119. अनासक्त सद्देहि स्वेहिं अ सज्जमाणे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 612] - सूत्रकृतांग 1127 साधु, शब्द और रूप में आसक्त न बने । 120. श्रमण सव्वेहि कामेहिं विणीय गेहि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 612] - सूत्रकृतांग 1027 मुनि सर्व कामनाओं से अपने चित्त को हटाकर शुद्ध संयम का पालन करें। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 85
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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