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- आचारांग 1/5/4462 जिस व्यक्ति का मिथ्याभिमान बढ़ा हुआ है, वह महामोह के कारण विवेक खो देता है। 10. अपरिपक्व
संबाहा बहवे भुज्जो भुज्जो दुरतिक्कमा अनाणतो अपासतो।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 8]
- आचारांग 1/5/4462 अज्ञानी और अपरिपक्व मनुष्य बार-बार आनेवाली बहुत सारी बाधाओं का पार नहीं पा सकता है । 11. नम्रता जे एगं णामे से बहुं णामे, जे बहुं णामे से एगं णामे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 11]
एवं [भाग 7 पृ. 813]
- आचारांग 13/4 - जो एक अपने को झुकाता है - जीत लेता है, वह बहुतों को झुकाता है और जो बहुतों को झुकाता है, वह एक को भी झुकाता है । 12. एकत्वभावना एगत्तमेव अभिपत्थएज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 13]
- सूत्रकृतांग Inon2 आत्मार्थी पुरुष एकत्व भावना की ही प्रार्थना करें ! 13. श्रमण-आहार-विधि मियं कालेण भक्खए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 69]
- उत्तराध्ययन 132 समयानुकूल परिमित भोजन करें । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 59