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सूक्ति::
276.
57.
215.
281.
171.
251.
10.
16.
32.
80.
102.
110.
127.
152.
229.
232.
91.
96.
180.
27.
सूक्ति का अंश
सुक्कमूले जहा रुक्खे ।
से
सेलथंभ समाणं माणं अणुपविट्ठे जीवे ।
से गामे वा नगरे वा ।
सेणावतिम्मिणिहते ।
सो
सोऊण ऊ गिलाणं ।
सोच्चा या उयं मग्गं बहवे परिभस्सई ।
सं
संबाहा बहवे भुज्जो भुज्जो । संभन्नवित्तस्स य ओ गई ।
संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिता ।
संरंभ समारंभे, आरंभे य तहेव य ।
संतो सिणो णोपकरेंति पावं ।
संसारमावन्न परं परंते ।
संगाम सीसेव परं दमेज्जा ।
संनिहिं च न कुव्वेज्जा, लेवमायाए संजए ।
संकट्ठाणं विवज्जए ।
संकिलेसकरं ठाणं ।
स्वानुकूलां क्रियां काले ।
शा
शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खाः ।
शाठ्यं (जाड्यं ) ड्रीमती गण्यते व्रतरुचौ ।
शु
अभिधान राजेन्द्र कोष
भाग
पृष्ठ
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शुभाशुभानि कर्माणि ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3• 141
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