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________________ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1184] - दशाश्रुतस्कंध 5. चित्त वृत्ति निर्मल होने पर ही ध्यान की सही स्थिति प्राप्त होती है। जो बिना किसी विमनस्कता के निर्मल मन से धर्म में स्थित हैं, वह निर्वाण को प्राप्त करता है। 279. दर्शनातुर देव अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेति ताइणो। ' - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1184] - दशाश्रुतस्कंध 5/4 जो साधक अल्पाहारी है, इन्द्रियों का विजेता है, सभी प्राणियों के प्रति रक्षा की भावना रखता है, उसके दर्शन के लिए देव भी आतुर रहते हैं। 280. मोह-क्षय धूम हीणो जहा अग्गी खिज्जते से निरिंधणे । एवं कम्माणि खीयते, मोहणिज्जे खय गए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1184] - दशाश्रुतस्कंध 503 जिसप्रकार अग्नि इंधन के अभाव में धूमरहित होकर क्रमश: विनाश को प्राप्त होती है उसीप्रकार मोहकर्म के क्षय होने पर अवशेष कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। 281. मोह-क्षय सर्वक्षय सेणावतिम्मिणि हते, जहा सेणा पणस्सति । एवं कम्मा पणस्संति, मोहणिज्जे खयं गए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 1184] - दशाश्रुतस्कंध 52 जिसप्रकार संग्राम में सेनापति के मर जाने पर सारी सेना भाग जाती हैं उसीप्रकार एक मोहनीय कर्म के क्षय होने पर सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं। (. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 124
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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