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________________ - उत्तराध्ययन 131 एवं दशवैकालिक 5/2/4 जिस काल में जो कार्य करने का हो, उस काल-समय में वही कार्य करना चाहिए अथवा समय पर समय का उपयोग (समयोचित कर्तव्य) करना चाहिए। 217. साध्वाचार कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता कालेकालं समायरे ॥ __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 970] एवं [भाग 6 पृ. 1165] - उत्तराध्ययन 1/31 श्रमण भोजन बनने के समय बाहर जाए एवं समय से वापस आ जाए। बेसमय का त्याग करके सारा काम यथासमय करे । 218. अलाभ परिषह अलाभोत्ति न सोएज्जा, तवोत्ति अहियासए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 971] - दशवैकालिक 52/ भिक्षु को यदि कभी मर्यादानुकूल शुद्ध भिक्षा न मिले, तो खेद न करे, अपितु यह मानकर अलाभ परिषह को सहन करे कि अच्छा हुआ; आज सहज ही तप का अवसर मिल गया । 219. पुरुषार्थ-प्रेरणा कुज्जा पुरिसकारियं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 971] - दशवकालिक 528 पुरुषार्थ करो। 220. समयानुकूल आहार मोक्खपसाहण हेऊ, णाणाति तप्पसाहणो देही । देहट्ठा आहारो, तेण तु कालो अणुणातो ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 110 )
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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