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- उत्तराध्ययन 23/68 संसार समुद्र में धर्म ही द्वीप है। 213. जिन-भास्करोदय
उग्गओ रवीण संसारो, सव्वण्णू जिण भक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोगम्मि पाणिणं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965]
- उत्तराध्ययन 2378 जिसका संसार क्षीण हो चुका है, जो सर्वज्ञ है; ऐसा जिन-भास्कर उदित हो चुका है । वही सारे लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा। 214. दुरारोह मोक्ष-वास
तं ठाणं सासयं वासं, लोगग्गम्मि दुरारूहं । जं संपत्ता न सोयंति, भवोहंतकरा मुणी ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 966]
- उत्तराध्ययन 23/84 भव प्रवाह का अन्त करनेवाले महामुनि जिसे पाकर शोकरहित हो जाते हैं वह स्थान लोक के अग्रभाग में है । शाश्वत रूप से मुक्तात्मा का वहाँ वास हो जाता है, जहाँ पहुँच पाना अत्यन्त कठिन है । 215. मुनि कैसे चले ?
से गामे वा नगरे वा, गोयरग्गगओ मुणी । चरे मन्दमणुव्विग्गो, अव्वक्खित्तेण चेयसा ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 968]
- दशवकालिक SAN गाँव में अथवा नगर में भिक्षा के लिए गया हुआ मुनि उद्वेग रहित बनकर शांत चित्त से धीरे-धीरे चले। 216. समयोचित कर्तव्य काले कालं समायरे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 970]
एवं [भाग 6 पृ. 1165]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 109