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अश्व
उन्मार्ग की ओर जाते हुए उस मन रूपी दुष्ट घोड़े को श्रुतज्ञान रूपी लगाम से बाँधकर मैं वश कर लेता हूँ। 205. मन-अश्व
मणो साहसिओ भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्मं निगिण्हामि, धम्म सिक्खाए कंथगं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 964]
- उत्तराध्ययन 23/38 यह मन बड़ा ही साहसिक, भयंकर दुष्ट घोड़ा है, जो बड़ी तेजी के साथ दौड़ता रहता है। मैं धर्म शिक्षा रूप लगाम से उस घोड़े को अच्छी तरह वश में किए रहता हूँ। 206. सम्यक् श्रद्धालु सम्मग्गं तु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 964]
- उत्तराध्ययन 23/63 - जिनेश्वरों ने जो कहा है, वही सर्वोत्तम मार्ग है; ऐसा जिनका अटल विश्वास है, वही सम्यक श्रद्धावान् है । 207. मिथ्यादृष्टि [असत्य प्ररूपक] कुप्पवयणपासंडी सव्वे उमग्ग पट्ठिया ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 964]
- उत्तराध्ययन 23/63 'कु' अर्थात् असत्य प्ररूपणा करनेवाले – कुप्रवचनवाले सभी पाखण्डी (मिथ्यात्वी) उन्मार्ग में स्थित हैं। 208. धर्म: उत्तम शरण
जरा मरण वेगेणं बुड्ढमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठाय, गई सरणमुत्तमं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 965]
उत्तराध्ययन 23/68 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 107