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________________ विज्ञाान (विवेक ज्ञान) से ही धर्म के साधनों का निर्णय होता है। 200. अपराजेय शत्रु एगऽप्पा अजिए सत्तु । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 963] - उत्तराध्ययन 23/38 स्वयं की असंयत आत्मा ही स्वयं का एक शत्रु है। 201. स्नेह-पाश रागद्दोसादओ तिव्वा, नेह पासा भयंकरा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 963] - उत्तराध्ययन 23/43 तीव्र राग-द्वेष, मोह, धन-धान्य, पुत्र-कलत्र आदि के स्नेह रूपी पाश बड़े भयंकर होते हैं। 202. विषवल्ली भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीम फलोदया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 963] - उत्तराध्ययन 23/48 संसार की तृष्णा भयंकर फल देनेवाली विष-बेल है। 203. कषायाग्नि कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसील तवो जलं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 964] - उत्तराध्ययन 23/53 कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) को अग्नि कहा गया है। उसे बुझाने के लिए श्रुत (ज्ञान), शील, सदाचार और तप जल है। 204. ज्ञानांकुश पहावंतं निगिण्हामि, सुयरस्सी समाहियं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 964] - उत्तराध्ययन 23/56 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 . 106
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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