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________________ 168. ज्ञान से मृदु मद्दव करणं नाणं । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 855] निशीथ भाष्य 6222 बृहदावश्यक भाष्य 783 को ज्ञान मनुष्य 169. अनुकम्पनीय मृदु (कोमल) बनाता है । होते हैं । 170. घट छिद्र बाला य बुड्ढा य अजंगमा य, लोगे वि एते अणुकंपणिज्जा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 857] बृहदावश्यक भाष्य 4342 बालक, वृद्ध और अपंग व्यक्ति, विशेष अनुकंपा (दया) के योग्य न य मूल विभिन्न थडे, जलमादीणि धरेइ कत्थई । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 859] बृहत्कल्प भाष्य 4363 जिस घड़े के पेंदे में छेद हो गया हो, उसमें जल आदि कैसे टिक सकते हैं ? 171. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त सोऊण ऊ गिलाणं, पंथे गामे य भिक्खवेलाए । जइ तुरियं नागच्छइ, लग्गड़ गुरूए स चउमासे ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 3 पृ. 877 ] निशीथ भाष्य 2970 बृहदावश्यक भाष्य 3769 विहार करते हुए, गाँव रहते हुए, भिक्षाचर्या करते हुए यदि सुन ले कि कोई साधु-साध्वी बीमार है, तो शीघ्र ही वहाँ पहुँचना चाहिए । जो साधु शीघ्र नहीं पहुँचता है, उसे गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-3 • 97
SR No.002318
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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