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________________ 134 आहार त्याग किसलिए? छहिं ठाणेहि समणे निग्गंथे आहारं वोच्छिदमाणे णाइक्कमइ तंजहा - आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेर गुत्तीसु । पाणिदया तवहेडं, सरीरवोच्छेयणट्ठाए ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 548] - पिण्ड नियुक्ति 96 . छह कारणों से श्रमण-निर्ग्रन्थ आहार का त्याग करता हुआ जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता । जैसे- रोग एवं उपसर्ग होने पर, ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकने पर, जीवदया न पल सकने पर, तपश्चर्या करने के लिए और अनशनादि द्वारा शरीर छोड़ने के लिए। 135 संसार-वलय से मुक्त नो जीवियं णो मरणाभिकंखी । चरेज्ज वलया विमुक्के ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 550] - सूत्रकृतांग 11024 साधु न तो जीवन की आकांक्षा करे और न मरण की । वह संसारचक्र से मुक्त होकर संयम-पथ में विचरण करें । 136 समाधिकामी निरपेक्ष निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी । _ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 550] - सूत्रकृतांग 1024 समाधिकामी साधु अपने घर से निष्क्रमण कर (दीक्षा लेकर) अपने जीवन के प्रति निराकांक्षी हो जाए। 137 साधक-परिशुद्ध सुद्धे सिया जाए न दूसएज्जा । ___ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 550] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 91
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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