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126 शुभाशुभ कर्म उपार्जन
शरीरेण सुगुप्त शरीरी चिनुते शुभम् । सततारम्भिणा जन्तुघातकेनाशुभं पुनः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 503] . - योगशास्त्र - 4/17
शुभ प्रवृत्तिवाले शरीर द्वारा प्राणी शुभ कर्म सञ्चित करता है और हिंसक तथा पाप-प्रवृत्तिवाले शरीर द्वारा वह अशुभ कर्म उपार्जित करता है । 127 अशुभ-कर्म-हेतु - कषाया विषया योगाः प्रमादाविरती तथा । मिथ्यात्वमार्तरौद्रे चेत्यशुभं प्रति हेतवः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 503]
- योगशास्त्र - 408 कषाय, विषय, योग, प्रमाद, अविरति, मिथ्यात्व और आर्त-रौद्र ध्यान – ये सब अशुभ कर्म के हेतु हैं । 128 धर्मोपदेश - पद्धति - अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणेणो अत्ताणं,
आसादेज्जा णो परं आसादेज्जा । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 512]
- आचारांग 1/6/507 विवेक पूर्वक धर्म की व्याख्या करता हुआ भिक्षु न तो अपने आपको पीड़ा पहुँचाए और न दूसरे को पीड़ा पहुंचाए। 129 अनुग्रहार्थ - प्राकृत - रचना
बाल-स्त्री-मूढ-मूर्खाणां, नृणां चारित्रकाक्षिणाम्। अनुग्रहार्थं तत्त्वज्ञैः, सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 512] - धर्मबिन्दु सटीक 2169 [60]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 89