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122 आलोचना से ऋजुता / आलोयणाए णं उज्जुभावं च जणयइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 465]
- उत्तराध्ययन - 2917 आलोचना से ऋजुता-निष्कपटता के भाव पैदा होते हैं । 123 सांध्य आवश्यक
समणेण सावएण य अवस्स कायव्व हवति जम्हा । अंतो अहो निसिस्सउ तम्हा आवस्सयं नाम ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 472]
- अनुयोगद्वार - 29-3 दिन-रात की संधि के समय श्रमण-श्रावक को अवश्य करने योग्य होने से इसे 'आवश्यक' कहा गया है । 124 शुभाशुभ-कर्म-सञ्चय
मैत्र्यादिवासितं चेतः, कर्म स्यूते शुभात्मकं । कषायविषयाक्रान्तं, वितनोत्यशुभं मनः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 503] .
- योगशास्त्र - 4/15 मैत्री आदि चार भावनाओं से सुवासित किया हुआ मन शुभ कर्म उत्पन्न करता है जबकि क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी कषाय तथा विषयों से व्याप्त हुआ मन अशुभ कर्म सञ्चित करता है । 125 सत्यासत्यवचन
शुभार्जनाय निर्मिथ्यं, श्रुतज्ञानाश्रितं वचः । विपरीतं पुनर्जेयमशुभार्जनहेतवे ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 503]
- योगशास्त्र - 416 आगमानुसारी सत्यवचन तथा उससे विपरीत वचन क्रमश: शुभ और अशुभ कर्म की प्राप्ति कराते हैं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 88