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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 135]
- तीत्थोगाली पयन्ना-1213 वस्तुत: एकान्त में मिथ्यात्व है। जिनेश्वरों की आज्ञा अनेकान्त की है। 33 आचार्यः तीर्थंकर तित्थयर समो सूरी।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 2 पृ. 135]
एवं [भाग 4 पृ. 2314] - महानिशीथसूत्र 5nol
- गच्छाचार पयन्ना टीका-27 आचार्य (गुरु भगवन्त) तीर्थंकर के समान होते हैं । 34 कापुरूष V आणं अइक्कमंते ते कापुरिसे न सप्पुरिसे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 135-335]
- महानिशीथ 5001 . जो तीर्थंकरों की आज्ञा का उल्लंघन करता है, वह कापुरूष है; सत्पुरुष नहीं। 35 आज्ञा आणाए च्चिय चरणं, तब्भंगे किं न भग्गं तु ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 137-138]
- बृहत्कल्पवृत्ति सभाष्य 1/3 आज्ञा-पालन में चारित्र है, आज्ञा के भंग में क्या भग्न नहीं होता ? अर्थात् सब कुछ भंग हो जाता है । 36 आज्ञोल्लंघन आणा नो खंडेज्जा, आणाभंगे कुओ सुहं ?
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग-2 पृ. 138-141] - महानिशीथ 5,120
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 65