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52 नइवेग समं चवलं च जीवियं, जोव्वणञ्च कुसुम समं ।
सोक्खं च अणिच्चं, तिण्णि वितुरमाण भोज्जाइं॥ 2 133 नत्थि छुहाए सरिसया वेयणा।
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178 548
550
136 निक्खम्म गेहाउ निरावकंखी।
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नो 44 नो य उपज्जए असं।
2 105 नो कित्ति-वण्णसद्द-सिलोगट्ठयाए आयारमहिढेज्जा 2 135 नो जीवियं णो मरणाभिकंखी।
चरेज्ज वलया विमुक्के॥ 242 नो इंदियग्गेज्झा अमुत्त भावा ।
अमुत्त भावा विय होइ निच्चो ।
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18 पणया वीरा महावीहिं। 81 पश्यन्ति परमात्मान-मात्मन्येव हि योगिनः। 2 89 पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेष: कपिलादिषु ।
युक्तिमद् वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ 2 110 परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा। 2 146 पतङ्गगमीनेभ सारङ्ग यान्ति दुर्दशाम् ।
एकैकेन्द्रिया दोषाच्चेत् दुष्टै स्तै किं न पञ्चभिः ॥ 2 217 पणया वीरा महाविहि, सिद्धिपहं णेयाउयं धुवं। 2 232 पकामदुक्खा अनिकाम सोक्खा ।
2 233 परिव्वयन्ते अनियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे। 2
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1187
198 पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा ।
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 . 133.