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सक
अभिमान राज
न सपल
178 णीवारमेय बुज्झेज्जा।
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114 णो सुलभा सुगई वि पेच्चओ। 170 णो विहरे सहणमित्थीसु 216 णो विय पूयण पत्थए सिया। 227 णोवि य कंडुयए मुणी गातं ।
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2 तपसो निर्जराफलं दृष्टम्
28 4 तस्मात् कल्याणानां सर्वेषां भाजनं विनयः । 28. 80 तरङ्गतरलालक्ष्मी-मायुर्वायुवदस्थिरम् ।
_ अदभ्रधीरनु ध्यायेदभ्रवद्भङ्गुरं वपुः ॥ 102 तसे पाणे न हिंसेज्जा। 103 तवचिमंजोगयंच, सज्झायजोगंचसया अहिट्ठिए।
सूरेवसेणाए समत्तमाउहे, अलमप्पणो होइ अलंपरेसिं॥2 387 169 तम्हाउ वज्जए इत्थी, विसलित्तं च कंटगंणच्चा। 2 626 214 तत्थ मंदा विसीयंति, उज्जाणं सिव दुब्बला। 2 1052 215 तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि जरग्गवा। 2 1052
ता 141 तावद् गर्जति खद्योतस्तावद् गर्जति चन्द्रमाः । ___ उदिते ते सहस्रांशौ न, खद्योतो न चन्द्रमाः ॥ 2 572
ति 33 तित्थयर समो सूरी।
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150 तुल्लेवि इंदियत्थे, एगो सज्जइ विरज्जइ एगो।
अब्भत्थं तु पमाणं, न इंदियत्था जिणावेंति ॥ .
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 131