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32 एगंतो मिच्छत्तं, जिणाण आणाय होइ णेगंतो।। 2 68 एगे आया।
2 69 एस आतावादी समियाए परियाए वियाहिते। 2 86 एगो वच्चइ जीवो, एगो चेवुव वज्जई।
एगस्स होइ मरणं, एगो सिज्झइ नीरओ॥ 2 87 एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ।
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा ॥ 2 180 एवित्थियाहि अणगारा, संवासेणणासमुवयंति ॥ 2 208 एते संगा मणुस्साणं पाताला व अतारिमा । 2 253 एक्को हु धम्मो नरदेव ! ताणं! न विज्जए अन्नमिहेह किंचि॥
अं 99 अंगाणं किं सारो ? आयारो।
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43 कडं च कज्जमाणं च आगमेस्सं पावगं ।
सव्वं तं णाणुजाणंति, आयगुत्ता जिइंदिया ॥ 83 कर्म जीवश्च सश्लिष्टं सर्वदा क्षीरनीरवत् ।
विभिन्नीकुरुते योऽसौ मुनिहंसो विवेकवान् ॥ 127 कषाया विषया योगाः प्रमादाविरती तथा ।
मिथ्यात्वमार्तौद्रे चेत्यशुभं प्रति हेतवः ।। 201 कम्मसच्चा हु पाणिणो।
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गणा।
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26 का अरइ ! के आणंदे एत्थंपि उग्गहे चरे। 257 काम भोगे य दुच्चए।
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213 कीवा जत्थ य किससंति, नाय संगेहिं मुच्छिया ॥ 2
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2 • 126