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________________ 118. धर्म-फल धम्मस्स फलं मोक्खो। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 507] - दशवैकालिक नियुक्ति 265 धर्म का फल मोक्ष है। 119. सत्, सत् अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 518] - भगवती 1/3/7 [1] अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है अर्थात् सत् सदा सत् ही रहता है और असत् सदा असत् । 120. स्थिर-शाश्वत ! अथिरे पलोट्टति, नो थिरे पलोट्टति; अथिरे भज्जति, नो थिरे भज्जति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 518] - भगवती 1/9/28 अस्थिर बदलता है, स्थिर नहीं बदलता । अस्थिर टूट जाता है, स्थिर नहीं टूटता। 121. सत् - असत् नासतो जायते भावो, ना भावो जायते सतः । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 518] - भगवद्गीता 2/16 जो असत् है, उसका कभी भाव [अस्तित्व] नहीं होता और जो सत् है; उसका कभी अभाव [अनस्तित्व] नहीं होता। 122. चक्षुष्मान् अदक्खुव दक्खुवाहितं सद्दहसु । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/88 -
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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