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हे सखे ! जिस मूर्ख में ये आठ गुण हैं, वे मुझे भी अच्छे लगते हैं । १. निश्चिन्त २. अतिभोजी ३ अत्रपमान (निर्लज्ज ) ४. रात - दिन शयन करनेवाला ५. कार्य- अकार्य की विचारणा में अंधा और बहरा ६. मान-अपमान में समान ७. निरोग और ८. मजबूत शरीर • ये आठ गुण जिसमें हैं, वह मूर्ख सुखपूर्वक जीता है ।
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106. सफल जीवन
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नानाशास्त्र सुभाषितामृतरसैः श्रोत्रोत्सवं कुर्वताम्, येषां यान्ति दिनानि पण्डितजन व्यायामखिन्नात्मनाम् । तेषां जन्म च जीवितं च सफलं तै रैव भूर्भूषिता, शेषै किं पशुवद्विवेक रहितै भूभार भूतैर्नरैः ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 488 ] उत्तराध्ययन सटीक 3 अध्ययन
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नानाशास्त्रों के सुभाषित अमृत रस से जो अपने कानों को सार्थक कर रहे हैं तथा जो विद्वज्जनों के साथ निरन्तर शास्त्रों के व्यायाम से स्वयं को थकाते हुए अपने दिन व्यतीत करते हैं, उन्हीं महापुरूषों का जीवन सफल है तथा उन्हीं से यह धरा सुशोभित है । शेष नर तो पशुवत् विवेकरहित मात्र भूमि के भार हेतु ही विचरण करते हैं ।
107. मोह मूढ़
असंकियाई संकंति, संकियाइं असंकिणो ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 491 ] सूत्रकृतांग 1/1/2/6
मोह मूढ़ मनुष्य को जहाँ वस्तुतः भय की आशंका है, वहाँ तो भय की आशंका करते नहीं है और जहाँ भय की आशंका जैसा कुछ नहीं है, वहाँ भय की आशंका करते हैं ।
108 अन्धों का भटकाव
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अंधो अंधं पहंणितो, दूरमद्धाण गच्छति ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 492]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/84