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- तित्थुगाली पयन्ना मूल 872 जो प्रमाण और नय के विशिष्ट गुणों के धारक स्यावाद की निंदा करता है वह भावों से दुष्ट भाववाला है, उसका कथन प्रवचन का प्रमाण नहीं हो सकता है अर्थात् उसका कथन प्रामाणिक नहीं है। 103. अज्ञान : दुःखरूप
अज्ञानं खलु कष्ट, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । अर्थं हितमहितं वा न वेत्ति येनावृत्तो लोकः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 488]
- श्री आगमीय सूक्तावलि - पृ. 19 o आचारांग सूक्तानि 23 (113)
अज्ञान, क्रोधादि सर्व पापों से भी सचमुच ही बड़ा दु:खदायी है, क्योंकि इससे आच्छादित लोग हिताहित वस्तु को नहीं समझते। 104. अज्ञानता कष्ट
अज्ञानं खलु कष्टम् ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 488] - श्री आगमीय सूक्तावलि पृ. 19
- आचारांग सूक्तानि 23 (113) अज्ञानता ही सभी प्रकार से मुसीबतें खड़ी करती हैं। 105. मूर्ख - गुण
मूर्खत्वं हि सखे ! ममापि रूचितं तस्मिन् यदष्टौ गुणाः। निश्चिन्तौ बहुभोजनोऽत्रपमाना नक्तंदिवाशायकैः ॥ कार्याकार्य विचारणान्धबधिरो' मानापमाने सम: । प्रायेणामय वर्जितो दृढ वपु मूर्खः सुखं जीवति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग । पृ. 488]
उत्तराध्ययन सूत्र सटीक 3 अध्ययन
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/83