SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि सोना और मिट्टी के ढेले को समान समझनेवाला होता है । 49. भिक्षावृत्ति सुखावह भिक्खावित्ती सुहावहा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 281 ] उत्तराध्ययन 35/15 भिक्षावृत्ति सुख देनेवाली है । 50. मुनि-प्रवृत्ति सुक्कज्झाणं झियाएज्जा, अनियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पज्जओ ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 282 ] उत्तराध्ययन 35/19 मुनि शुक्लध्यान में लीन रहे, सांसारिक सुखों की कामना न करे, सदा अकिञ्चनवृत्ति से रहे तथा जीवनभर काया का त्याग कर विचरण करता रहे। 51. साधक - एषणा रहित - अच्चणं रयणं चेव, वंदणं पूयणं तहा । इड्ढी सक्कार - सम्माणं, मणसा वि न पत्थए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 282] उत्तराध्ययन 35/18 संयमी साधक अर्चना, वन्दना, पूजा, ऋद्धि, सत्कार और सम्मान को मन से भी न चाहे । 52. पूर्ण आत्मस्थ निम्ममो निरहंकारो, वीयरागो अणासवो । संपत्तो केवलं नाणं, सासए परिनिव्वुडे ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 282 ] उत्तराध्ययन 35/21 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-1 /68
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy