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________________ (१) मल और (२) वायु की हमेशा से भिन्न दुर्गन्ध (३) विष्टा में हमेशा से भिन्नता, (४) शरीर का भारीपन (५) अन्न पर अरुचि तथा (६) बुरी डकार आना । अजीर्ण के ये ६ लक्षण हैं। 28. अजीर्ण से रोग मूर्छा प्रलापो वमथुः, प्रसेकः सदनं भ्रमः । उपद्रवा भवन्त्येते, मरणं वाऽप्य जीर्णतः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 203] - धर्मबिन्दु सटीक 36 अजीर्ण के कारण मूर्छा, प्रलाप, कम्पन, अधिक पसीना व धुंक आना, शरीर नरम होना तथा चक्कर आना आदि उपद्रव होते हैं और अचेतन से अन्त में मृत्यु भी होती है अर्थात् अजीर्ण के समय कुछ न खाकर लंघन करना चाहिए। 29. बलप्रद - जल अजीर्णे भोजने वारि, जीर्णे वारि बलप्रदम् । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 203] वाचस्पत्याभिधान [कोष चाणक्य नीति 8/7 बदहजमी होने पर पानी बलवर्धक है और हजम हो जाने पर पानी शक्तिवर्धक है। 30. आर्जव-अंकुर अज्जवयाएणं काउज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 219] - उत्तराध्ययन 29/50 सरल भाव से जीव को काया की ऋजुता, भाषा की ऋजुता और अविसंवादन भाव की प्राप्ति होती है । 31. सच्चा आराधक अवि संवायणं संपन्नयाएणं जीवे । धम्मस्स आराहए भवइ ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/62
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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