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नहीं करने की अपेक्षा कुछ करना अच्छा है ।
अकथा
मिच्छत्तं वेयन्तो, जं अन्नाणी कहं परिकes | लिंगत्थो व गिही वा, सा अकहा देसिआ समए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 124 ] एवं [भाग 6 पृ. 274 ] दशवैकालिक नियुक्ति 209
मिथ्या दृष्टि अज्ञानी – चाहे वह साधु के वेष में हो या गृहस्थ के वेष में, उसका कथन 'अकथा' कहा जाता है ।
10.
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 123 ] विक्रम चरित्र - 1/3
आरम्भासक्त जीव
आरम्भसत्तां गढिता य लोए, धम्मं न याणंति विमोक्ख हेउं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 126 ] सूत्रकृतांग 1/10/16
सावद्य आरंभ में आसक्त और विषय-भोगों में गृद्ध लोग मोक्ष के धर्म को नहीं जाते ।
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कारणभूत 11. क्रोध - परिणाम
क्रोध न करें ।
सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू ण संजले ।
उत्तराध्ययन 2/26
क्रोध करने से साधु अज्ञानियों के समान हो जाता है, अत: साधु
12. अपशब्द
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 131 ]
ददतु ददतु गालीं गालिमंतो भवन्तः । वयमपि तदभावात् गालिदानेऽप्यशक्ताः ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/57