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________________ 9. - नहीं करने की अपेक्षा कुछ करना अच्छा है । अकथा मिच्छत्तं वेयन्तो, जं अन्नाणी कहं परिकes | लिंगत्थो व गिही वा, सा अकहा देसिआ समए ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 124 ] एवं [भाग 6 पृ. 274 ] दशवैकालिक नियुक्ति 209 मिथ्या दृष्टि अज्ञानी – चाहे वह साधु के वेष में हो या गृहस्थ के वेष में, उसका कथन 'अकथा' कहा जाता है । 10. श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 123 ] विक्रम चरित्र - 1/3 आरम्भासक्त जीव आरम्भसत्तां गढिता य लोए, धम्मं न याणंति विमोक्ख हेउं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 126 ] सूत्रकृतांग 1/10/16 सावद्य आरंभ में आसक्त और विषय-भोगों में गृद्ध लोग मोक्ष के धर्म को नहीं जाते । - कारणभूत 11. क्रोध - परिणाम क्रोध न करें । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू ण संजले । उत्तराध्ययन 2/26 क्रोध करने से साधु अज्ञानियों के समान हो जाता है, अत: साधु 12. अपशब्द श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 131 ] ददतु ददतु गालीं गालिमंतो भवन्तः । वयमपि तदभावात् गालिदानेऽप्यशक्ताः । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/57
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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