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1. धर्म में शीघ्रता
मा पडिबंध करेह ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृष्ठ-7]
- अन्तकृत् दशांग 3 वर्ग [धर्म कार्य में] विलम्ब मत करो। 2. यथोचित
अहासुहं देवाणुप्पिया।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 7]
- अन्तकृत्दशांग 4 वर्ग । हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो । 3. मृत्यु निश्चित
जहा जाएणं अवस्सं मरियव्वं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष भाग [1 पृ. 7]
- अन्तकृत्दशांग 4 वर्ग जिसने जन्म लिया है, वह अवश्य मरेगा । पञ्चाति वर्जित अइरोसो अइतोसो अइहासो दुज्जणेहिं संवासो । अइ उब्भडो य वेसो, पंच वि गुरूयं पि लहुयं पि॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 11]
एवं भाग 2 पृ. 900
- धर्मसंग्रह - 2 / 71 अतिरोष, अतितोष, अतिहास्य, दुर्जनों का सहवास और अति उद्भटवेष - ये पाँचों ही महान् को भी लघु बना देते हैं । 5. आत्मवत् चाहो !
जं इच्छसि अप्पणतो, जेवण इच्छसि अप्पणंतो ।
तं इच्छं परस्स वियं, इत्तियगं जिण सासणयं ॥ ____ अभिधान राजेन्द्र कोषं में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/55