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________________ 238888888342958 नम्बर अभिधान राजेन्द्र कोष सूक्ति भाग पृष्ठ 77. जइ वि य णिगिणे किसे चरे, जइविय भुंजियमासमंतसो । जे इह मायादि मिज्जती, आगंता गब्भायऽणंत सो ॥ 1 332 142. जह कोहाइ विवड्ढी, तह हाणी होइ चरणे वि। 1 574 175. जहि णत्थि सारणा वारणा य पडिचोवायणा य गच्छम्मि । सो उ अगच्छो गच्छो संजम कामीण मोत्तव्यो। 1 195. जले विष्णुः, स्थले विष्णुः विष्णुपर्वत मस्तके। ज्वाल माला कुले विष्णुः, सर्वं विष्णुमयं जगत् ।। 1 207. जरोवणीयस्सहु नत्थि ताणं । 1 219. जन्मजरामरणभयै - रभिद्रुते व्याधिवेदनाग्रस्ते । जिनवरवचनादन्य-त्र नास्ति शरणं क्वचिल्लोके ॥ 1 844 2 178 जि 116. जिणवयणम्मि परिणए, अवत्थविहि आणु ठाणओ धम्मो। सच्छा ऽ सयप्पयोगा, अत्थो वीसंभओ कामो ॥ 1 507 780 819 32. जे अज्झत्थं जाणति से बहिया जाणति । जे बहिया जाणति से अज्झत्थं जाणति ।। एतं तुल्लमण्णेसि। 227 1061 67. जे लक्खणं सुविणं पउंजमाणे । निमित्त को ऊहल संपगाढे ॥ कुहेड विज्जासवदार जीवी। न गच्छइ सरणं तंमि काले ॥ ___1 171. जे अबुद्धा महाभागा, वीरा असम्मत्तं दंसिणो। __. असुद्धं तेसिं परक्कंतं, सफलं होइ सव्वसो॥ 1 5 326 326 684 60 63. जो पव्वइत्ताण महव्वयाई सम्मंनो फासयति पमाया। अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिंदइ बंधणं से ।।1 325 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/133
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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