SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 875 882 । अभिधान राजेन्द्र कोष नम्बर सूक्ति भाग पृष्ठ 237. अक्खो वंजणवणाणु लेवण भूयं संजम जाया णिमित्तं __संजम भार वहण छाए भुंजेज्जा पाण धारणट्ठयाए। 1 875 241. अहिंसए संजए सुसाहू । 246. अहिंसा परमं धर्माङ्गम् । 1 879 247. अहिंसैव मता मुख्या स्वर्ग मोक्षप्रसाधनी । अस्याः संरक्षणार्थं च न्याय्यं सत्याऽऽदिपालनम्। 1 2457 250. अहिताशनसम्पर्का, - त्सर्वरोगोद्भवो यतः । तस्मात्त दहितं त्याज्यं, न्याय्यं पथ्यनिवेषणम् ॥ 1 887 2 आ 10. आरम्भसत्तां गढिता य लोए, धम्मं न याणंति विमोख हेडं। 1 126 25. आमं विदग्धं विष्टब्धं, रसशेषं तथा परम्। 1 26. आमे तु द्रव गन्धित्वं, विदग्धे धूमगन्धिता। विष्टब्धे गात्रभङ्गोऽत्र रसशेषे तु जाड्यता ।। 203 36. आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं । 549 203 240 556 423 351 95. आदीपमा व्योम सम स्वभावं । स्याद्वाद मुद्रानति भेदिवस्तु ॥ 83. आमे घड़े निहित्तं, जहा जलं तं घडं विणासेइ। इअ सिद्धंत रहस्सं, अप्पाहारं विणासेइ ॥ 62. आउत्तया जस्स य नत्थि काई। इरियाए भासाए तहेसणाए । . आयाण निक्खेव दुगुंछणाए। नवीर जायं अणु जाई मग्गं ।' 157. आत गुत्ते सदा वीरे जाता माताए जावए। 1 325-326 1 598 44. इच्छा कामं च लोभं च, संजओ परिवज्जए। 1 280 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/129
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy