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________________ 210. श्रेष्ठ पुरुष के लक्षण वरं प्राण परित्यागो, मा मान परिखण्डना । प्राण त्यागे क्षणं दुःखं, मान भने दिने दिने ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 836] - विक्रमचरित्र - 1/1 चक्रदेव चरित एवं चाणक्य नीति श्रेष्ठ पुरुष प्राण त्याग कर सकते हैं, किन्तु मानभंग नहीं कर सकते हैं; क्योंकि मृत्यु से क्षणमात्र ही कष्ट होता है, परन्तु मानभङ्ग से जीवन भर कष्ट होता है। 211. मिथ्यात्व न मिथ्यात्व समः शत्रु - न मिथ्यात्व समं विषम् । न मिथ्यात्व समो रोगो, न मिथ्यात्व समं तपः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 840] - धर्मसंग्रह 1 अधिकार, पृ. 20 मिथ्यात्व के समान कोई शत्रु नहीं, मिथ्यात्व से बढ़कर कोई जहर नहीं; मिथ्यात्व के समान कोई रोग नहीं और मिथ्यात्व के समान कोई अंधकार नहीं ! 212. मिथ्यात्व - भयंकर द्विषद् विषतमो रोगै र्दुःखमेकत्र दीयते । मिथ्यात्वेन दुरन्तेन, जन्तो जन्मनि जन्मनि ॥ __ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 840] - धर्मसंग्रह 1 अधिकार पृ. 20 जहर, अंधकार और रोग एक बार ही दुःख देता है, किन्तु भयंकर मिथ्यात्व तो प्राणी को जन्म-जन्मान्तर में कष्ट देता है । 213. मिथ्यात्व-जीवन वरं ज्वाला कुले क्षिप्तो, देहिनाऽत्मा हुताशने । न तु मिथ्यात्व संयुक्तं, जीवितव्यं कदाचन ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/111 -
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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