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________________ जो असंविभागी है, प्राप्त सामग्री को साथियों में बाँटता नहीं है और परस्पर प्रेमभाव नहीं रखता है, वह अविनीत कहा जाता है। 206. मा प्रमाद असंखयं जीविय मा पमायए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 819] - उत्तराध्ययन 4/1 जीवन का धागा टूट जाने पर पुन: जुड़ नहीं सकता, वह असंस्कृत है; इसलिए प्रमाद मत करो। 207. वृद्धावस्था रक्षक नहीं जरोवणीयस्सहु नत्थि ताणं ।। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 819] - उत्तराध्ययन 4/1 बुढ़ापा आने पर कोई भी त्राण नहीं देता । 208. एकरूपता यथा चित्तं तथा वाचो, यथा वाचस्तथा क्रियाः । धन्यास्ते त्रितये येषां, विसंवादो न विद्यते ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1 पृ. 835] - धर्मरत्न प्रकरण 1 अधि. पृ. 11 जैसा चित्त वैसी वाणी, जैसी वाणी वैसी क्रिया (आचरण) इन तीनों की जिनमें एकरूपता हैं, वे मानव धन्य हैं। 209. मायावी, अविश्वसनीय मायाशील: पुरुषो यद्यपि न करोति किंचिदपराधम् । सर्प इवाविश्वास्यो, भवति तथाप्यात्मदोषहतः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग | पृ. 835] - प्रशमति प्रकरण 28 मायावी पुरुष यद्यपि कोई अपराध नहीं करता है, तथापि अपने माया दोष के कारण सर्प के समान वह लोक में अविश्वसनीय ही रहता है। - अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1/110
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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