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सेठ बखतशाह
सेठ खुशालचन्द के बाद उनके पुत्र बखतशाह नगर सेठ बने । मुगल और मराठा दोनों सत्ताओं ने इन्हें मान्यता दी थी। बखतशाह के समय में स्थिति बहुत नाजुक और विषम थी। क्योंकि उन्हें दोनों सत्ताओं को राजी रखना पड़ता था किन्तु वखतशाह ने अपने पिता खुशालचन्द से राजनैतिक क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त की थी, इसलिए वे चतुर राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने दामाजी गायकवाड के साथ जौहरी का सम्बन्ध बनाकर बड़ौदा में भी पेढी स्थापित की थी। गायकवाड राज्य से भी इन्हें छत्र, मशाल तथा पालकी का सन्मान प्राप्त था। इन्होंने पालीताणा, गिरनार तथा आबू के बहुत बड़े यात्रा संघ निकाले थे। जिसमें गायकवाड राज्य की तरफ से सैनिक संरक्षण प्राप्त हुआ था। इन्होंने काठियावाड के राजाओं को भी कर्ज देना शुरू किया। कर्ज के ऐवज में उनके गांव गिरवी रख लेते । काठियावाड़ के बड़े राज्यों के साथ इस जौहरी-परिवार के सम्बन्ध गहरे होने लगे थे। उन दिनों बैंकों का प्रचलन नहीं था। अत: साहूकारों की ओर से कर्ज लिया जाता था। सम्पूर्ण गुजरात में जौहरी-नगरसेठ ही सबसे बड़े सराफ थे, जिनका लेन-देन गुजरात ही नहीं, दिल्ली तक चलता था । अकबर, जहाँगीर, शहाजहाँ, औरंगजेब, बहादुरशाह, जहांदरशाह, फरुखशायर तक सभी बादशाहों को इन्होंने कर्ज दिया था। गायकवाड़ को भी कर्ज देते थे।