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________________ ४८ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास साथ अहमदबाद भेजा। फरमान अहमदाबाद पहुंचा। सूबेदार चुपचाप दिल्ली के लिए रवाना हुआ और सेठ खुशालचन्द का बड़े ठाठ से अहमदाबाद में प्रवेश हुआ। दिल्ली में फरुखशायर तो नाममात्र का बादशाह था। सब सत्ता सैयदबंधु के हाथ में थी। बादशाह के साथ उनका मनोमालिन्य हुआ। बादशाह ने अपने पक्ष में कुछ सरदारों को करके सैयदबंधुओं के नाश की योजना बनाई लेकिन सैयदबन्धुओं को खबर लग गई। उन्होंने मराठों की सहायता लेकर १७१९ में फरुखशायर की आंखों में गर्म सलाखें डालकर अंधा कर दिया और बाद में बहुत बुरी गत बनाकर उसका बध कर दिया गया तथा बहादुरशाह के पोते को गद्दी पर बिठाया गया। उनकी मृत्यु होने पर चौथे पुत्र को महमदशाह के नाम से गद्दी पर बैठाया। दिल्ली में उन दिनों बड़ी अन्धाधुंधी चल रही थी। दिल्ली की सत्ता शिथिल हो गई। दक्षिण के निजाम और मराठों की सत्ता प्रबल हुई । लूटपाट, अत्याचार और खून-खराबी का दौरा चल रहा था। मुगल सल्तनत के गृहकलह तथा खून-खराबी की विषम स्थिति में गुजरात को दो कसौटियों में से पार उतरना था। सैयदबन्धुओं ने गुजरात से चौथ वसूली का मराठों को हक देने का आश्वासन देकर सहायता प्राप्त की थी और बादशाह फरुखशायर को हराया था। तब से मराठों की फौज गुजरात में चौथ वसूल करने के लिए 'हर-हर महादेव' की घोषणा करते हुए घूमती और शहरों तथा गांवों पर आक्रमण करके लूटपाट करती। यदि लूट नहीं मिलती तो सैनिक गांवों में आग लगा देते। दूसरी ओर से मुगल शहंशाह ने गुजरात में अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए निजाम-उल्मुल्क को सूबागिरी सौंप रखी थी और उसके
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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