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________________ सेठ खुशालचन्द ४७ महाजन सूबेदार के पास गये, और कहा 'आप हवेली को अभय दान दे दें।' सूबेदार बोला- 'यह कैसे हो सकता है ? वह शाही मिल्कियत हो जावेगी ।' महाजन ने कहा - 'हुजूर चाहे वह शाही मिल्कियत हो जाय, लेकिन उसकी बर्बादी तो नहीं की जानी चाहिए।' सूबेदार ने कहा'मैं उसे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा, लेकिन उस पर सरकारी कब्जा रहेगा । हमारे अफसर वहीं रहेंगे ।' महाजन ने कहा - 'दो महीने की मोहलत दीजिए। बाद में आप चाहे जो कर सकते हैं । हमारी इतनी अर्ज तो आपको मन्जूर रखनी चाहिए ।' सूबेदार ने स्वीकृति दे दी । नगरसेठ ने हवेली खाली करवाकर २१ रोज में वापिस आने का आव्हान दिया और अपने साथ अरबों की फौज लेकर सैकड़ों गाड़ियाँ सामान के साथ वे पेथापुर के पास वसाणा नामक ग्राम में जाकर निवास करने लगे सेठ खुशालचन्द ने तुरन्त बादशाह को अर्जी लिखवाई जिसमें पूरी स्थिति की जानकारी देकर सूबेदार के अन्यायपूर्ण हुक्म और उसे न मानने के कारण, सूबेदार द्वारा किये गये जुल्म के कारण अहमदाबाद छोड़कर जाने की बात पूरे ब्यौरे के साथ लिखकर अपने अहमदाबाद लौटने के लिए बादशाही मदद की मांग की। पहले के बादशाहत के साथ के सम्बन्धों और उसके लिए किये गये कामों का जिक्र किया । साथ ही साथ सैयद बन्धु हुसेनअली खाँ और अब्दुल्लाखाँ को भी लिखा । उधर सूबेदार की रिपोर्ट भी पहुँची । उन दिनों सैयदबन्धु बलशाली थे, सर्व सत्ताधीश थे । उनकी सलाह पर सूबेदार को दिल्ली बुलाया गया और हुसेनअली खाँ के शागिर्द को बादशाह के हुक्म के
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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