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________________ नगरसेठ लक्ष्मीचन्द ३१ हूँ, जिसे मंजूर रखने की मेहरबानी करें। यों कहकर थैली बादशाह को भेंट की । औरंगजेब खुश होकर बोला, आपकी वफादारी और ताल्लुकात को देखते हुये आपने जो कुछ किया उसके लिए हम इज्जत करते हैं और आप तथा आपके खानदान के लिए हमारी हमेशा मेहरनजर रहेगी । हुजूर की और बादशाहत की हमारे खानदान पर हमेशा मेहर नजर रही है। जिसके लिये हमारा खानदान बादशाहत के लिये हमेशा शुक्रगुजार रहेगा। एक गुजारिश है, हम लोगों के बन्दगी की जगह और तीर्थों को अब तक जिस तरह बादशाहत से रक्षा होती रही वह आगे भी होती रहे । बादशाहत से हमेशा शाही फरमान मिलते रहे, हुजूर की ओर से भी मिलेंगे यह भरोसा है । . औरंगजेब अपनी सत्ता दृढ़ बनाने के लिए अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाने में महत्व समझता था । वह धूर्त तथा पक्का राजनीतिज्ञ था । उसे शान्तिदास सेठ और जैन कौम को राजी रखना था । शान्तिदास सेठ की अपने परिवार के स्वार्थ की नहीं पर अपने मजहब की रक्षा की चिन्ता देखी तो उसका कठोर दिल भी कुछ नरम हुआ। वह बोला, खुदा के दरबार में हर इंसान को पहुँचने का हक है। इसलिए आप फिक्र न करें। आपको अपने खानदान की सनदें नये फरमान से ताईद की हुई मिल जायेंगी । आप जैसे शाही खानदान वफादार अमीर और बादशाहत के मददगार साहूकार के लिये हमारे दिल में इज्जत, है । आपके खानदान को अहमदाबाद के सेठ का इल्काब और शाही जौहरी की जगह बख्शी जायगी लेकिन आपकी रकमें जो अटक गई हैं वे वसूल नहीं होती हों तो उसमें भी हमारी मदद ली जा सकती है । सेठ शान्तिदास बोले- हुजूर, आपने हमारे तीर्थों के लिए नये फरमान निकालने की महरबानी की मन्शा जाहिर की उसके लिये
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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