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तीर्थरक्षक सेठ शान्तींदास
फरमानों के बावजूद सेठ शांतिदास जौहरी की ओर से नई सनद की माँग की इसलिए फरमान किया जा रहा है कि परगने को शांतिदास जवेरी का इनामी परगना समझा जाय । जो २८ जून १६५८ में निकाला गया ।
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यह फरमान इसलिए लिया गया कि नये बादशाह का संरक्षण प्राप्त हो । औरंगजेब ने कुरान की सौगन्ध लेकर मुराद से कहा कि वह राज्य नहीं चाहता । मक्का जाकर खुदा की इबादत में अपना समय बिताना चाहता है । उसकी बातों में मुराद आकर औरंगजेब के पक्ष में मिला और औरंगजेब तथा मुराद की सेना के सामने सामगढ़ के पास दाराशिकोह की पराजय हुई | दाराशिकोह को पलायन करना पड़ा। दोनों की संयुक्त सेना ने उसका पीछा किया। इधर मुराद के साथियों द्वारा उसे मद्यपान और ऐशो-आराम में ऐसा मस्त किया कि वह अपनी सुध-बुध 'खो दे। मुराद जीत की खुशी में बहुत अधिक मद्यपान करने लगा । उसे अपने आपका भान ही नहीं रहा । तब औरंगजेब ने सेना के बड़े-बड़े अफसरों और सेनापतियों को उसकी स्थिति बताकर कहा कि यह तो बादशाहत के लिए अयोग्य शासक है | सरदारों और सेनापतियों में यह भाव निर्माण कर उन्हें बहुत बड़ी रिश्वतें देकर अपने पक्ष में लिया और मुराद को कैद कर लिया । उसे ही नहीं, अपने पिता शाहजहां को भी आगरा में कैद कर १७ जुलाई १६५८ में बादशाह बना । बहुत बड़ी धूमधाम और उत्सव के साथ गद्दीनशीन हुआ ।
मुरादवक्स को लक्ष्मीचन्द ने आक्रमण पर जाते समय साढ़े पाँच लाख रुपये कर्ज दिये थे। मुराद ने गुजरात के शहंशाह का पद घोषित कर उज्जैन को अधीन करके वहीं से साढ़े पाँच लाख रुपये किस प्रकार चुकाये जायं इस विषय में सूबेदार को रुक्का भेजा था जिसमें लिखा था - सूरत की आमदनी से डेढ़ लाख, खम्भात की