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________________ नगर सेठ लक्ष्मीचन्द सेठ शांतिदास जौहरी ने १६५७ में व्यवसाय से निवृत्ति लेकर अपना समय आत्म-साधना में लगाया और परिवार का सारा दायित्व उन्होंने पुत्र लक्ष्मीचन्द को सौंपा। जब कभी कठिन समस्या में सलाह और सहयोग मांगते, देते। सेठ लक्ष्मीचन्द भी उनके मार्ग-दर्शन में काम सम्भालते हुए व्यवहार कुशल हो गये थे और राजनीति भी समझने लग गये थे। जब १६५७ में शाहजहाँ बहुत बीमार हुए तब उनके चारों पुत्रों में से सबसे बड़ा दाराशिकोह दिल्ली में था। दूसरा सुजा अब्दुल्ला बंगाल का सूबेदार था, तीसरा औरंगजेब दक्षिण का और चौथा मुराद गुजरात का सूबेदार था। बादशाह की बीमारी और दाराशिकोह के उदार और कोमलवृत्ति का लाभ उठाकर तीनों कुमारों ने सत्ता हथियाने के लिए तैयारी की। मुरादवख्स ने भी अहमदाबाद में अपने आप को बादशाह घोषित कर मस्जिद में अपने नाम से खुतबा पढ़ाई। शाहजहान के चारों लड़के संघर्षरत हुए। सैनिक तैयारियां होने लगीं। सेना एकत्र करने लगे। मुरादवख्स को धन की आवश्यकता थी वह सेठ लक्ष्मीचन्द ने देकर उससे शत्रुजय तीर्थ के लिए नई सनद प्राप्त की। उसने अपने आप को बादशाह गाजी के नाम से घोषित किया। इस फरमान में लिखा गया कि तहसील पालीताना जो शत्रुजय के नाम से भी पहचाना जाता है। उसे बादशाही फरमानों द्वारा शांतिदास सेठ को इनाम में बख्शा गया है। उन
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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