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१८ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास
सुनी और बादशाह सलामत को समझाकर कोई रास्ता निकालने को कहा।
तीसरे रोज बादशाह के दरबार में सेठ शांतिदास को मुलाकात के लिए बुलाया गया । सेठ ने बहुमूल्य आभूषण बादशाह को नजर किए ।
बादशाह ने पूछा - "कहिए जौहरी मामा सब ठीक है ?"
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" खुदाबन्द, मेरी जिन्दगी बर्बाद हुई । मेरे सफेद बालों में मिट्टी डाल दी गई हुजूर, मैं हर तरह से सताया गया हूँ, सेठ ने कहा बादशाह ने अनपत्व से पूछा - 'कहो क्या बात हुई ?" सेठ शांतिदास ने बड़ी कुशलता से मंदिर के ध्वंस की बात कही और बताया कि बादशाही फर्मान से वह मंदिर बना था। जगह का रुक्का मिला था, मैंने अब तक बादशाह की खिदमत की, अब तक बादशाह की मेहरबानी रही, लेकिन आपके खिदमतगार पर बडा जुल्म हुआ परवरदिगार !
शहजादा बोला - " आप कहते हो ? मंदिर फनाह हो गया । वहीं मस्जिद बन गई । अब आप क्या चाहते हैं ? "
सेठ बोले, "हुजूर, मुझे मंदिर की जगह का कब्जा मिले, यही गुजारिश है ।"
बादशाह ने कहा, "लेकिन वहाँ तो मस्जिद बन गई है। अब वहाँ मंदिर कैसे बन सकता है । यह बात शारीयत के खिलाफ है ।"
सेठ बोले, “बादशाह सलामत की मेहरबानी से सब कुछ हो सकता है । मैं बादशाहत का पुराना खैरख्वाह खिदमतगार हूँ । आपसे इन्साफ चाहता हूँ । मुझे मेरी जगह वापिस मिले और गुनहगार को सजा । मैंने यह मंदिर शहंशाह बादशाह सलामत जहांगीर की इजाजत से बनाया था। मेहरबानी करके नक्शा देखिए । सब खुलासा हो जायगा ।"