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________________ १४ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास (जूते) निकाले बिना हमारा प्रवेश नहीं हो सका था। छत और दीवारों पर तरह-तरह के खम्भात के अकीक के पत्थरों के टुकड़े बैठाकर रमणीयता बढ़ाई गयी थी। चिंतामणि प्रशस्ति नामक संस्कृत ग्रन्थ में इस मंदिर का वर्णन है : "संवत् १६७८ (सन् १६२१) में वर्धमान और शांतिदास जो विपुल लक्ष्मी के स्वामी थे अपने परिवार के लोगों के साथ अत्यन्त चरित्र सम्पन्न जीवन बिता रहे थे। मंदिरों के निर्माण से भाग्य का विकास होता है इस मंतव्य से महान सुन्दर मंदिर बनाया। यह मंदिर बीबीपुरा में था। मंदिर के द्वार के पास आशीर्वाद के लिए पंच पत्र थे। ऊँची विशाल सीढ़ियां मानो स्वर्ग की ओर ले जा रही हो, ऐसा आभास होता था। मंदिर में छः भव्य आवास थे जो मेघनाद, सिंहनाद, सूर्यनाद, रंगमंडप और गढ़गोत्र इस नाम से पहचाने जाते थे। दो मीनारें और चार मंदिर आसपास थे। नीचे भूमिगृह में मूर्तियां स्थापित की गई थीं। ___ मंदिर सन् १६२५ में तैयार हुआ था और दो दशक शांति से बीते । बादशाह जहांगीर ने अपने पिता की उदार नीति अपनाई थी। इन दोनों के शासन में हिन्दु प्रजा को कोई तकलीफ नहीं थी। दोनों पर जैन और हिन्दु संतों का प्रभाव था। उनमें धर्मान्धता नहीं थी। वे उदार और सम्यक्दृष्टि से युक्त थे। उनके समय जैन व हिन्दु मंदिर सुरक्षित थे। यदि कोई धर्मान्ध मुस्लिम सरदार या सूबेदार कोई गलती करते तो सजा दी जाती थी। लेकिन जहांगीर के बाद शाहजहां गद्दी पर बैठा । वह अकबर और जहाँगीर की तरह उदार नहीं था, जिससे सेठ शांतिदास को तीर्थों की रक्षा के लिए चिन्ता होने लगी। शत्रुजय पर उत्तम कलापूर्ण मंदिर थे, जिनकी पवित्रता व रक्षा के लिए उन्हें वहाँ सैनिक रखने पड़ते । गुजरात का सूबेदार आजमखान सेठ शांतिदास का मित्र तथा सुसंस्कारों का था।
SR No.002308
Book TitleTirthrakshak Sheth Shantidas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Ranka
PublisherRanka Charitable Trust
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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