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________________ 150. हेदुमभावे णियमा जायदि णाणिस्स आसवणिरोधो। आसवभावेण विणा जायदि कम्मस्स दु णिरोधो।। हेदुमभावे मनाव कारण अभाव होने पर अनिवार्यतः णियमा जायदि णाणिस्स आसवणिरोधो आसवभावेण विणा जायदि [(हेर्नु)+(अभावे)] हेतुं (हेदु) 2/1 अभावे (अभाव) 7/1 अव्यय 'पंचमी अर्थक' (जाय) व 3/1 अक (णाणि) 6/1 वि [(आसव)-(णिरोध) 1/1] [(आसव)-(भाव) 3/1] अव्यय (जाय) व 3/1 अक (कम्म) 6/1 अव्यय (णिरोध) 1/1 होता है ज्ञानी के आस्रव का निरोध आस्रव भाव के बिना होता है कम्मस्स कर्म का णिरोधो निरोध अन्वय- हेदुमभावे णियमा णाणिस्स आसवणिरोधो जायदि दु आसवभावेण विणा कम्मस्स णिरोधो जायदि।। - अर्थ- (रागादि) कारण का अभाव होने पर अनिवार्यतः ज्ञानी के आस्रव का निरोध होता है और आस्रव भाव के बिना (कर्मों का आगमन न होने से) कर्म (ज्ञानावरणादि) का निरोध होता है। 1. विणा' के योग में द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (53)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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