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________________ 139. चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा य विसयेसु। परपरितावपवादो पावस्स य आसवं कुणदि।। चर्या चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा और विसयेसु परपरितावपवादो (चरिया) 1/1 [(पमाद)-(बहुल) 1/1 वि] असावधानी से व्याप्त (कालुस्स) 1/1 कलुषता/मलिनता (लोलदा) 1/1 लोलुपता । अव्यय (विसय) 7/2 विषयों में [(परपरिताव)+ (अपवादो)] [(पर) वि-(परिताव)* 1/1] अन्य मनुष्यों को संताप अपवादो (अपवाद) 1/1 निंदा (पाव) 6/1 और (आसव) 2/1 आस्रव (कुण) व 3/1 करती है पावस्स पाप अव्यय आसवं कुणदि अन्वय- पमादबहुला चरिया कालुस्सं य विसयेसु लोलदा परपरितावपवादो य पावस्स आसवं कुणदि। ___ अर्थ- असावधानी से व्याप्त चर्या, (मन में) कलुषता/मलिनता और (इन्द्रिय) विषयों में लोलुपता, अन्य मनुष्यों को संताप (देना) और (उनकी) निन्दा (करना) (ये सब) (जीव में) पाप आस्रव करती हैं। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517) (42) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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