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जदा
माणो
138. कोधो व जदा माणो माया लोभो व चित्तमासेज्ज।
जीवस्स कुणदि खोहं कलुसो त्ति य तं बुधा बेंति।। कोधो (कोध) 1/1
क्रोध अव्यय
अथवा अव्यय
जब (माण) 1/1
मान माया (माया) 1/1
माया लोभो (लोभ) 1/1
लोभ अव्यय
अथवा चित्तमासेज्ज
[(चित्तं)+(आसेज्ज)] चित्तं (चित्त) 2/1-7/1 मन में
आसेज्ज (आस) व 3/1 अक विद्यमान होता है जीवस्स- (जीव) 6/1-7/1 जीव में कुणदि (कुण) व 3/1 सक करता है खोहं (खोह) 2/1
व्याकुलता कलुसो त्ति
[(कलुसो)+ (इति)] कलुसो (कलुस) 1/1 वि मलिन इति (अ) =
वाक्यार्थद्योतक अव्यय
और (त) 2/1 सवि
उस (बात) को (बुध) 1/2 वि
ज्ञानी (बू-बे) व 3/2 सक
कहते हैं
.
*
अन्वय- कलुसो त्ति जदा कोधो व माणो व माया लोभो चित्तमासेज्ज य जीवस्स खोहं कुणदितं बुधा बेंति।
__ अर्थ- (वह) (मन) (तब) मलिन (कहा जाता है) जब क्रोध अथवा मान (अथवा) माया अथवा लोभ मन में विद्यमान होता है और जीव में व्याकुलता (उत्पन्न) करता है। ज्ञानी उस (बात) को कहते हैं।
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) 2. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) नोटः संपादक द्वारा अनूदित
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
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