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________________ 131. मोहो रागो दोसो चित्तपसादो य जस्स भावम्मि। विज्जदि तस्स सुहो वा असुहो वा होदि परिणामो।। मोहो दोसो चित्तपसादो चित्त की प्रसन्नता अथवा जस्स भावम्मि विज्जदि (मोह) 1/1 (राग) 1/1 (दोस) 1/1 [(चित्त)-(पसाद) 1/1] अव्यय (ज) 6/1 सवि (भाव) 7/1 (विज्ज) व 3/1 अक (त) 6/1 सवि (सुह) 1/1 वि अव्यय (असुह) 1/1 वि अव्यय (हो) व 3/1 अक (परिणाम) 1/1 जिसके भाव में होती है उसके तस्स सुहो अथवा असुहो वा अशुभ पादपूरक होता है परिणाम होदि परिणामो अन्वय- जस्स भावम्मि मोहो रागो दोसो य चित्तपसादो विज्जदि तस्स असुहो वा सुहो वा परिणामो होदि। ____ अर्थ- जिसके भावों में मोह (आत्मविस्मृति), राग (आसक्ति), द्वेष (शत्रुता) अथवा चित्त की प्रसन्नता (अनासक्त अवस्था) होती है उसके अशुभ अथवा शुभ परिणाम होता है। (34) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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