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________________ 128. जो खलु संसारत्थो जीवो तत्तो दु होदि परिणामो। परिणामादो कम्मं कम्मादो होदि गदिसु गदी।। जो खलु 3. ॐ ॐ निश्चय ही संसार में स्थित संसारत्थो जीवो तत्तो जीव होदि (ज) 1/1 सवि अव्यय (संसारत्थ) 1/1 वि (जीव) 1/1 (त) 5/1 सवि अव्यय (हो) व 3/1 अक (परिणाम) 1/1 (परिणाम) 5/1 (कम्म) 1/1 (कम्म) 5/1 (हो) व 3/1 अक (गदि) 7/2 (गदि) 1/1 परिणामो परिणामादो उस कारण से पादपूरक होता है रूपान्तरण रूपान्तरण से कर्म कर्म से होता है गतियों में कम्मादो होदि * * * गदिसु गमन अन्वय- जो संसारत्थो जीवो तत्तो दु खलु परिणामो होदि परिणामादो कम्मं कम्मादो गदिसु गदी होदि। ____ अर्थ- जो (आवागमनात्मक) संसार में स्थित जीव (है) उस कारण से (उसमें) निश्चय ही (राग-द्वेषात्मक) रूपान्तरण होता है। (उस) रूपान्तरण से (द्रव्य/पुद्गलमयी) कर्म (उत्पन्न होता है)। (द्रव्य-भाव/पुद्गलमयी) कर्म से गतियों में गमन होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (31)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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