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127. अरसमरूवमगंधमव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं । जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ।।
अरसमरूवमगंध
मव्वत्तं
चेदणागुणमसद्दं
जाण
अलिंगग्गहणं
[(अरसं) + (अरूवं) +
(अगंधं) + (अव्वत्तं)]
अरसं (अरस) 2/1 वि
अरूवं (अरूव) 2/1 वि
अगंध (अगंध) 2 / 1 वि
अव्वत्तं (अव्वत्त) 2/1 वि [(चेदणागुणं) + (असद्दं)]
रस-रहित
-रहित
गंध-रहित
अप्रकट
(जाण) विधि 2 / 1 सक
(अलिंगगहण ) 2 / 1 वि
रूप
{[(चेदणा)-(गुण) 2/1}वि] चेतना गुणवाला
असद्दं (अ-सद्द) 2/1 वि
शब्द-रहि
जानो
तर्क से ग्रहण न
होनेवाला
जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं [(जीवं) + (अणिद्दिट्ठसंठाणं)]
जीवं (जीव ) 2 / 1
जीव को
अणिद्दिसंठाणं (अणिदिट्ठसंठाण) न कहे हुए
2/1 fa
आकारवाला
अन्वय- जीवं अरसमरूवमगंधमव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं अलिंगग्गहणं अणिद्दिट्ठसंठाणं जाण ।
अर्थ- जीव को रस-रहित, रूप-रहित, गंध-रहित, (स्पर्श से ) अप्रकट, चेतना गुणवाला, शब्द-रहित, तर्क से ग्रहण न होनेवाला और न कहे हुए आकरावाला जानो।
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पंचास्तिकाय (खण्ड- 2) नवपदार्थ - अधिकार