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________________ 124. आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा। तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा।। आगासकालपुग्गल- [(आगास)-(काल)-(पुग्गल)- आकाश, काल, पुद्गल, धम्माधम्मेसु (धम्म)-(अधम्म) 7/2] धर्म और अधर्म द्रव्यों नहीं है जीव के गुण णत्थि जीवगुणा तेसिं अचेदणतं उनमें अव्यय [(जीव)-(गुण) 1/2] (त) 6/2-7/2 सवि (अचेदणत्त) 1/1 (भण) भूकृ 1/1 (जीव) 6/1-7/1 (चेदणदा) 1/1 भणिदं अचेतनता कही गयी जीव में चेतनता जीवस्स चेदणदा अन्वय- आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु जीवगुणा णत्थि तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा। अर्थ- आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्यों में जीव के गुण (चैतन्य भाव) नहीं है। उन (पाँचों द्रव्यों) में अचेतनता कही गयी है। जीव (द्रव्य) में चेतनता (है)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। __ (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार (27)
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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