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________________ 117. सुरणरणारयतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू। जलचरथलचरखचरा बलिया पंचेंदिया जीवा। सुरणरणारयतिरिया वण्णरसप्फास गंधसद्दण्हू जलचरथलचर [(सुर)-(णर)-(णारय)- देव, मनुष्य, नारकी (तिरिय) 1/2] और तिर्यंच [(वण्ण)-(रस)-(प्फास)- वर्ण, रस, स्पर्श, . (गंध)-(सद्दण्हू) 1/2 वि] गंध और शब्द को जाननेवाले [(जलचर)-(थलचर)- जल में रहनेवाले, (खचरा) 1/2 वि भूमि पर चलनेवाले, आकाश में विचरण करनेवाले (बलिय) 1/2 वि बलवान [(पंच) वि-(इंदिय) 1/2] पाँच इन्द्रिय (जीव) 1/2 जीव खचरा बलिया पंचेंदिया जीवा अन्वय- सुरणरणारयतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू जीवा पंचेंदिया जलचरथलचरखचरा बलिया। अर्थ- देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यंच स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द को जाननेवाले (हैं)। (इसलिए) (वे) जीव पंचेन्द्रिय (हैं)।(वे) जल में रहनेवाले, भूमि पर चलनेवाले और आकाश में विचरण करनेवाले (होते हैं) (तथा) (इनमें) बलवान (जीव) (भी) (होते हैं)। (20) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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