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108. जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं तेसिं । संवरणिज्जरबंधो मोक्खो य हवंति ते अट्ठा ।।
जीवाजीवा [(जीव) + (अजीवा)] [(जीव) - (अजीव) 1/2]
(भाव) 1 / 2
( पुण्ण) 1/1
(पाव) 1 / 1
अव्यय
( आसव ) 1 / 1
आस्रव
(त) 6/2 सवि
उनके
[ ( संवर) - ( णिज्जरा - णिज्जर ) ' - संवर, निर्जरा और
( बंध) 1 / 1
बंध
(मोक्ख) 1 / 1
मोक्ष
अव्यय
और
(हव) व 3 / 2 अक
होते हैं
(त) 1/2 सवि
वे
(अट्ठ) 1/2
पदार्थ
भावा
पुण
पावं
च
आसवं
तेसिं
संवर णिज्जरबंधो
मोक्खो
य
हवंति
अझ
1.
]
(12)
जीव- अजीव
पदार्थ
अन्वय- जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च तेसिं आसवं संवरणिज्जरबंधो य मोक्खो ते अट्ठा हवंति ।
अर्थ- जीव-अजीव पदार्थ ( हैं ) । पुण्य-पाप ( पदार्थ हैं) और उन (पुण्य और पाप दोनों) के आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष - ( इस प्रकार ) वे (नौ) पदार्थ होते हैं।
पुण्य
पाप
और
यहाँ छन्द पूर्ति हेतु 'णिज्जरा' का 'णिज्जर' किया गया है।
पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ - अधिकार