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४. उपयोति विकास या मालिक
82. उवभोज्जमिदिएहि य इंदियकाया मणो य कम्माणि।
जं हवदि मुत्तमण्णं तं सव्वं पुग्गलं जाणे।।
भोगे जाने योग्य
इन्द्रियों के द्वारा
और इन्द्रियाँ, शरीर
मन
य
तथा
कम्माणि
उवभोज्जमिंदिएहि [(उवभोज्जं)+ (इंदिएहि)]
उवभोज्जं (उवभोज्ज) विधिकृ 1/1 अनि इंदिएहि (इंदिअ) 3/2
अव्यय इंदियकाया [(इंदिय)-(काय) 1/2] मणो
(मणो) 1/1 अव्यय (कम्म) 1/2
(ज) 1/1 सवि हवदि
(हव) व 3/1 अक मुत्तमण्णं [(मुत्तं)+(अण्णं)]
मुत्त (मुत्त) 1/1 वि अण्णं (अण्ण) 1/1 वि
(त) 1/1 सवि सव्वं
(सव्व) 1/1 सवि पुग्गलं
(पुग्गल) 1/1 (जाण) विधि 2/1 सक
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अन्य वह सब पुद्गल जानो
जाणे
अन्वय- इंदिएहि उवभोज्जं य इंदियकाया मणो य कम्माणि जं मुत्तमण्णं हवदि तं सव्वं पुग्गलं जाणे।
अर्थ- इन्द्रियों के द्वारा भोगे जाने योग्य (पदार्थ), इन्द्रियाँ (स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण), शरीर (औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस
और कार्माण) (द्रव्य) मन और (द्रव्य) कर्म तथा जो अन्य मूर्त (पदार्थपरमाणु व स्कंध) है, वह सब पुद्गल (है) (तुम) जानो। 1. प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पिशल, पृ.सं. 679) नोट- संपादक द्वारा अनूदित
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार