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57.
कम्म
वेदयमाणो
जीवो
भावं
करेदि
जारिसयं
सो
तेण
तस्स
कत्ता
दि
कम्मं वेदयमाणो जीवो भावं करेदि जारिसयं । सो तेण तस्स कत्ता हवदि त्ति य सासणे पढिदं ।।
य
सास
पढिदं
(कम्म) 2 / 1 (वेदयमाण) वकृ 1 / 1 अनि
(जीव ) 1 / 1
(भाव) 2 / 1
(कर) व 3 / 1 सक
(जारिस) 2 / 1 वि
'य' स्वार्थिक
(त) 1 / 1 सवि
अव्यय
(त) 6/1 सवि
( कत्तु ) 1/1 वि
[(हवदि) + (इति)]
हवदि (हव) व 3 / 1 अक
इति (अ) = इस प्रकार
अव्यय
(सासण) 7/1 (पढ) भूकृ 1/1
कर्म को
भोगता हुआ
जीव
भाव
करता है
जैसे
वह
उस कारण से
उसका
करनेवाला
होता है
इस प्रकार
पादपूरक
आगम में
कहा गया
अन्वय- कम्मं वेदयमाणो जीवो जारिसयं भावं करेदि सो तेण तस्स कत्ता हवदित्तिय सासणे पढिदं ।
अर्थ-कर्म को भोगता हुआ जीव जैसे भाव करता है (वैसे ही) वह उस कारण से उस (भाव) का करनेवाला होता है। आगम में इस प्रकार (यह ) कहा गया (है)।
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य - अधिकार
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