________________
50. समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो य।
तम्हा दव्वगुणाणं अजुदा सिद्धि त्ति णिद्दिवा।।
समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो
(समवत्ति) 1/1 (समवाअ) 1/1 (अपुधब्भूद) 1/1 वि
साथ-साथ रहना समवाय अपृथक बना हुआ और अपृथक्करणीय
अव्यय
अजुदसिद्धो
और
य
तम्हा दव्वगुणाणं
(अजुदसिद्ध) 1/1 वि अव्यय अव्यय [(दव्व)-(गुण) 6/2] (अजुदा) 1/1 वि [(सिद्धि)+ (इति)] सिद्धि (सिद्धि) 1/1 इति (अ) = (णिद्दिट्ठा) भूक 1/1 अनि
इसलिए द्रव्य और गुणों का अनादि
अजुदा
* सिद्धि त्ति
वैधता वाक्यार्थद्योतक प्रतिपादित की गई ।
णिद्दिट्टा
अन्वय- दव्वगुणाणं समवत्ती समवाओ य अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो तम्हा अजुदा सिद्धि त्ति णिहिट्ठा।
अर्थ- द्रव्य और गुणों का साथ-साथ रहना (जिनधर्म में) समवाय (घनिष्ट संबंध) (है) और (वह संबंध) अपृथक बना हुआ (प्रदेशभेदरहित) (है)
और अपृथक्करणीय (जानना चाहिए)। इसलिए (जिनेन्द्र द्वारा) (द्रव्य और गुण के संबंध में) अनादि वैधता प्रतिपादित की गई (है)।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पृष्ठ 517)
(60)
पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार