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46. ववदेसा संठाणा संखा विसया य होंति ते बहुगा।
ते तेसिमणण्णत्ते अण्णत्ते चावि विज्जंते।।
नाम
ववदेसा संठाणा संखा
संरचना/आकार संख्या उद्देश्य
विसया
और
होति
होती हैं
बहुगा
अनेक
(ववदेस) 1/2 (संठाण) 1/2 (संखा) 1/2 (विसय) 1/2
अव्यय (हो) व 3/2 अक (त) 1/2 सवि (बहुग) 1/2 वि 'ग' स्वार्थिक (त) 1/2 सवि [(तेसिं)+ (अणण्णत्ते)] तेसिं (त) 6/2 सवि अणण्णत्ते (अणण्णत्त) 7/1 (अण्णत्त) 1/2 [(च)+ (अवि)] च (अ) = तथा अवि (अ) = भी (विज्ज) व 3/2 अक
तेसिमणण्णत्ते
उनकी अपृथकता में पृथकताएँ
अण्णत्ते
चावि
तथा
विज्जते
विद्यमान होती हैं
अन्वय- ववदेसा संठाणा संखा य विसया ते अण्णत्ते बहुगा होंति च ते तेसिमणण्णत्ते अवि विज्जते।
अर्थ- (वस्तुओं का) नाम, (उनकी) संरचना/आकार, (उनकी) संख्या और (उनके) उद्देश्य- वे पृथकताएँ अनेक (होती हैं), तथा वे (पृथकताएँ) उनकी (द्रव्य और गुणों की) अपृथकता में भी विद्यमान होती हैं। नोटः संपादक द्वारा अनूदित
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पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार