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20.
णाणावरणादीया'
भावा
जीवेण
णाणावरणादीया भावा जीवेण सुटु अणुबद्धा । तेसिमभावं किच्चा अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो ।।
सुटु
अणुबद्धा
सिमभावं
किच्चा
अभूदपुव्वो
हवदि
सिद्धो
[(णाणावरण) + (आदीया ) ]
[( णाणावरण) - (आदिय) 1/2] ज्ञानावरण वगैरह
'य' स्वार्थिक
(30)
(भाव) 1/2
(जीव ) 3 / 1
अव्यय
(अणुबद्ध) भूक 1/2 अनि [(तेसिं)+(अभावं)]
तेसिं (त) 6/2 सवि
अभाव (अभाव) 2/1
(किच्चा) संकृ अनि
(अभूदपुव्व) 1 / 1 वि
(हव) व 3 / 1 अक
(सिद्ध) 1 / 1
1. यहाँ छन्द की पूर्ति हेतु 'आदि' का 'आदी' हुआ है।
द्रव्यकर्म
जीव के द्वारा
भली-भाँति बाँधे हुए
अन्वय- जीवेण णाणावरणादीया भावा सुट्टु अणुबद्धा तेसिमभावं किच्चा सिद्धो हवदि अभूदपुव्वो ।
हुए
अर्थ- जीव के द्वारा ज्ञानावरण वगैरह द्रव्यकर्म भली-भाँति बाँधे ( हैं ) उनका नाश करके (जीव) सिद्ध होता है (जो) अपूर्व (घटना है)।
उनका
नाश
करके
अपूर्व
होता है
सिद्ध
पंचास्तिकाय (खण्ड- 1 ) द्रव्य - अधिकार