SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. इंदसदवंदियाणं तिहुअणहिदमधुरविसदवक्काणं। अंतातीदगुणाणं णमो जिणाणं जिदभवाणं।। सौ इन्द्रों द्वारा वंदित तीन लोक में हितकारी, मधुर और स्पष्ट वचनों को इंदसदवंदियाणं' [(इंद)-(सद) वि (वंद) भूकृ 4/2] तिहुअणहिदमधुर- [(तिहुअण)-(हिद) विविसदवक्काणं' (मधुर) वि-(विसद) वि (वक्क) 4/2] अंतातीदगुणाणं' [(अंत)+ (अतीदगुण)] [(अंत)-(अतीद) वि(गुण) 4/2] अव्यय जिणाणं (जिण) 4/2 जिदभवाणं [(जिद) भूक अनि (भव) 4/2] अन्त-रहित गुणों को णमो नमस्कार जिनेन्द्रों को जीत लिया संसार को अन्वय- इंदसदवंदियाणं जिणाणं तिहुअणहिदमधुरविसदवक्काणं अंतातीदगुणाणं जिदभवाणं णमो। ___ अर्थ- सौ इन्द्रों द्वारा वंदित जिनेन्द्रों को, तीन लोक में (उनके) हितकारी, मधुर और स्पष्ट वचनों को, (उनके) अन्त-रहित गुणों को (तथा) (जिन्होंने) संसार को जीत लिया (है) (उनको) नमस्कार। 1. णमो' के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (11)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy